Friday, April 02, 2010

द पॉपर एंड द प्रिंस (The Pauper and the Prince)

द पॉपर एंड द प्रिंस (The Pauper and the Prince)

शोर से बच के जो चलते हैं

और शोर नापसंद करते हैं
साफ़ चादर साफ़ लिबास पहनकर
साफ़ भाषा से शर्म करते हैं -

पेट में दाना, घर में माँ,
सर पे छत जिनकी रही हो हमेशा -
जिन्हें मांगने की ज़रुरत न पड़ी हो कभी
देने में वो कंजूसी किया करते हैं।

भूखे रहकर आता है समझ पानी,
अकेले रहकर दुनिया समझ आती है।
ढाई अक्षर के लिए दर दर भटके नहीं जो
वो रोज़ खाने में नखरे किया करते हैं।

जान लगी ही नहीं दाँव पे कभी,
जब खेला सोने चांदी के लिए खेला,
जिन्होंने जीता तो घर भर ने ख़ुशी मनाई
वो जीतने पे बड़ा मान किया करते है।

कोई नुकीले पत्थर से, कोई मोम के तीरों से -
लड़ते सब हैं, चोट सबको लगती है, पर
हर चोट पे माँ की आवाज़ सुनते हों जो
वो शोर से ज़रा बच के चलते हैं।

1 comment:

qnaguru said...

Shunya mein bhee Shor Hai,
Hai Shor Maun Mein.

Jo koyee ruk ruk kar bole,
Ho sakta tez uskee rukawat mein.

Jo dikh raha usse to jaano,
Jo adrishya hai usse bhee pehchano.