Wednesday, August 13, 2008

Kal maine dukh dekha - कल मैने दुख देखा

कल मैने दुख देखा

दो पैरों पे चलता था
थोड़ा बाहर, बड़ा अन्दर था
एक औरत था
गोरा चिट्टा सुन्दर सा

एक छोटा सा बच्चा ले कर
वो बाज़ार करता था
और बच्चे को चपत लगाकर
ना रोने को कहता था

बच्चे की चीखों से कुछ
कुछ बाज़ार बिगड़ता था
कैसी माँ है, कैसी माँ है
कुछ कुछ ऐसा कहता था

पर बच्चा तो छोटा था
उसका दुख भी छोटा था
उसके पीछे एक दुख था
बड़ा सम्भला - सम्भला सा

जो शायद कभी रोता था
और जिसके आसूँ सूख गये
बच्चे सा बिलखता था
और जिसके सपने गुम गये

अश्वत्थामा सा शापित जो
अपना शव खुद ढोता है
और मौका बस पाता नहीं
सो धीरे धीरे मरता है

मन तो बड़ा किया मेरा
उससे बातें करने का
हाथ पे उसके हाथ रख कर
कुछ मीठा कहने का

मन तो बड़ा किया मेरा
सूखे गाल छूने का
गले उसे लगा कर के
"होता है" ये कहने का

पर मैनें सोचा
घाव खुले हैं अच्छे हैं
मलहम से बढ़ने वाले
ये घाव हमेशा रिसते है

क्या कहेगा वो अपनी?
एक पल में जन्मा हूँ
दो बातों से पनपा हूँ
और अब सदीयाँ जीता हूँ?

क्या कहेगा दुख अपनी?
सपने टूटे मुझे दिला दो
और जो सपने न ढ़ूँढ़ सको तो
फिर से मुझे रोना सिखला दो?

सो उसकी अपनी किस्मत पर
मैनें दुख को छोड़ दिया
मन तो नहीं था मेरा पर
कुछ छूट गया, कुछ छोड़ दिया

कल, मैने दुख देखा

Thursday, August 07, 2008

ऐ खुदा

फ़ुर्सत मिले, तो तू भी कभी सुन तेरे ठुकराए हुए बच्चों का कहा

फ़ुर्सत मिले, तो लम्हे थोड़े से मेरे नाम कभी करना ऐ खुदा


खाली आँखों को मेरी, देने को तेरे पास टूटे ख्वाब भी नहीं

मेरी झोली तो चलो ठीक मगर, खाली खाली तेरा दामन है खुदा


तेरी दुनिया से, तेरे लोगों से, तुझे इतनी मोहब्बत क्यों है

बड़े सालों से ये सोचता हूँ, कैसे बन जाऊँ तेरी दुनिया मैं खुदा