Wednesday, July 22, 2009

नियती - Niyati

पानी के नाज़ुक धागों से
मैं ख़ुशी बनाया करता हूँ

दिन भर के मेरे हासिल को
नियती शाम को घायल करती है -
मैं चार धागे बुनता हूँ
वो पाँच उधेड़ा करती है।

मैं दिन भर सूरज तपता हूँ
वो रात को मेहनत करती है -
मैं चार खिलौने गढ़ता हूँ
वो पाँच बिगाड़ा करती है।

मैं नियती की गाढ़ी मेहनत को
हर सुबह मिटाया करता हूँ।

पानी के नाज़ुक धागों से
मैं ख़ुशी बनाया करता हूँ

जग के सारे काजों को
जल्दी निपटाना होता है -
दिल आस छोड़े उसको थोड़ा
हर शाम रुलाना होता है।

बैरी
नियती के प्रेमी को
यूँ समय बिताना होता है -
वो तोड़ सके ऐसे धागों से
ख़ुशी बनाना होता है।

मैं नियती के इस बैर को
हर सुबह भुलाया करता हूँ।

पानी के नाज़ुक धागों से
मैं ख़ुशी बनाया करता हूँ।

Thursday, July 16, 2009

Yet Again

Yet again I try
To grab in my fist -
Yet another future
Too bright to exist.

Yet again I find
God mighty unfair,
Yet again I learn
Ghosts are just air.

Saturday, July 04, 2009

First Rain

Ah! The Green!
Left behind
By the first rain
Ah! The splashes!
Peace defined
By the first rain
The sounds! The smell!
The life divine -
The first rain.