Saturday, February 21, 2009

Aajkal - आजकल

तू हर रोज़ जो खुदा को अर्ज़ीयाँ लिखता है

तू हर रोज़ जो ईबादत में मुखलिस हो झुकता है


तुझको मालूम है ना आजकल समय चीज़ है बड़ी

तेरे जैसों की खुदा के दरबार में भीड़ है बड़ी

झल्ला के फ़रिश्तों ने नया कानून घढ़ा है

उसके खेल के मैदानों में नया ऐलान करा है


अब अर्जीओं का, गुजारिशों का चर्चा नहीं होता

अब आँसूओं से लिखने वाले का लिखा नहीं मिटता


खुदा मसरूफ़ है

अब रोज़ रोज़ रोने वालों से वास्ता नहीं होता

उसके खेल के मैदानों में कोइ मोज्ज़ा नहीं होता

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