Amol Palekar
This poem reminds me of Amol Palekar movies. Hence the title.
मेरी छोटी सी कालोनी में एक छोटा सा लॉन है
पच्चीस फ़ीट चौड़ा
कुछ चालीस फ़ीट लम्बा
ज़्यादा बड़ा नहीं विस्तार में
अक्सर मैं सोचा करता हूँ, "दुनिया तो गोल है,
हर शाम फिर कैसे आ सिमटती है,
इस चौकोर से आकार में?"
[Update: I translated this poem into English and it is available as the next post. ]
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