Wo Hai
वो है
वो जो बारिश का पहला
मेरे चेहरे पर, गिरता है छींटा
वो ही तो है
धूर्त है बड़ा
छिप के चोरों की तरह
बादलों के पीछे से घात लगाये रहता है
की कब मैं निकलूँ
और वो गिरे
और वो जो सुबह सुबह
मेरे बालों में, उलझता है उजाला
वो ही तो है
उसको भी मेरी तरह
सुबह अच्छी लगती है
खिड़की की दरारों से झांकता रहता है
की कब मैं जागूँ
और वो उलझे
और वो जो बाहर हवा है
वो हँस रहा है ज़ोर से, ताक लगाये है मेरी
वो ही तो है
सोचता है
मुझे मालूम नहीं
वो मौसम बन के बिखरा है पूरे आसमान में
की कब मैं देखूँ
और वो छू ले
No comments:
Post a Comment